श्री मद्भागवत महापुराण कथा
श्री मद्भागवत महापुराण 18 पुराणों में से पाँचवा प्रमुख पुराण है, नारद मुनि जी के प्रेरणा से महर्षि वेदव्यास जी ने समस्त पुराण, वेदांत और वेदों में प्रकाश डालने के बाद श्रीमद्भागवत पुराण लिखा था, इसमें 12 अलग-अलग स्कन्द, 335 अध्याय और लगभग 18 हजार श्लोक शामिल है ।
इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता वेद व्यास को माना जाता है।
श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।
भागवत पुराण में महर्षि सूत जी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं। साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सूत जी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह स्कन्ध हैं। प्रथम स्कन्ध में सभी अवतारों का सारांश रूप में वर्णन किया गया है।
सर्व वेदान्त का सार : श्रीमद्भाग्वतम्
श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। भागवत निगमकल्पतरु का स्वयंफल माना जाता है जिसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तथा ब्रह्मज्ञानी महर्षि शुक ने अपनी मधुर वाणी से संयुक्त कर अमृतमय बना डाला है। स्वयं भागवत में कहा गया है-
सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते।
अर्थात
श्रीमद्भाग्वतम् सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती।
संरचना
नारद जी की प्रेरणा से वेद व्यास जी ने श्रीमद् भागवत ग्रन्थ लिखा है। भागवत में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय तथा 12 स्कन्ध हैं। इसके विभिन्न स्कंधों में विष्णु के लीलावतारों का वर्णन बड़ी सुकुमार भाषा में किया गया है। परंतु भगवान् कृष्ण की ललित लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय है। श्रीमद् भागवत पुराण विद्या का अक्षय भंडार है। यह पुराण सभी प्रकार के कल्याण देने वाला है।
प्रथम स्कन्ध : - इसमें भक्तियोग और उससे उत्पन्न एवं उसे स्थिर रखने वाला वैराग्य का वर्णन किया गया है। इसमें भगवान के विविध अवतारों का वर्णन, देवर्षि नारद के पूर्वजन्मों का चित्रण, राजा परीक्षित के जन्म, कर्म और मोक्ष कीकथा, अश्वत्थामा का निन्दनीय कृत्य और उसकी पराजय, भीष्म पितामह का प्राणत्याग, श्रीकृष्ण काद्वारका गमन, विदुर के उपदेश, धृतराष्ट्र, गान्धारी तथाकुन्ती की तन गमन एवं पाण्डवों का स्वर्गारोहण के लिए हिमालय में जाना आदि घटनाओं का क्रमवार कथानक के रूप में वर्णन किया गया है।
द्वितीय स्कन्ध : - इसमें ब्रह्माण्ड की उत्त्पत्ति एवं उसमें विराट् पुरुष की स्थिति का स्वरूप वर्णन किया गया है। इसमें विभिन्न देवताओं की उपासना, गीता का उपदेश, श्रीकृष्ण की महिमा का उल्लेख है।
तृतीय स्कन्ध : - इसमें उद्धव जी द्वारा भगवान् का बाल चरित्र का वर्णन किया गया है। इसमें विदुर और मैत्रेय ऋषि की भेंट, सृष्टि क्रम का उल्लेख, ब्रह्मा की उत्पत्ति, सृष्टि-विस्तार का वर्णन, वराह अवतार की कथा, दितिके आग्रह पर ऋषि कश्यप द्वारा असमय दिति से सहवास एवं दो अमंगलकारी राक्षस पुत्रों के जन्म का शाप देना जय-विजय का सनत्कुमार द्वारा शापित होकर विष्णुलोक से गिरना और दिति के गर्भ से 'हिरण्याक्ष' एवं 'हिरण्यकशिपु' के रूप में जन्म लेना, प्रह्लाद की भक्ति, वराह अवतार द्वारा हिरण्याक्ष और नृसिंह अवतार द्वारा हिरण्यकशिपु का वध आदि का वर्णन किया गया है।
चतुर्थ स्कन्ध : - इसमें राजर्षि ध्रुव एवं पृथु आदि का चरित्र वर्णन किया गया है।
पंचम स्कन्ध : - इसमें समुद्र, पर्वत, नदी, पाताल, नरक आदि की स्थिति किया गया है। प्रियव्रत, अग्नीध्र, राजा नाभि, ऋषभदेवतथा भरत आदि राजाओं के चरित्रों का वर्णन है।
षष्ठ स्कन्ध : - इसमें देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के जन्म की कथा का वर्णन किया गया है। नारायण कवच और पुंसवन व्रत विधि का वर्णन जनोपयोगी दृष्टि से किया गया है।
सप्तम स्कन्ध : - इसमें हिरण्यकश्यिपु, हिरण्याक्ष के साथ प्रहलाद का चरित्र का वर्णन किया गया है। भक्तराज प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु की कथा विस्तारपूर्वक है। इसके अतिरिक्त मानव धर्म, वर्ण धर्म और स्त्री धर्म का विस्तृत विवेचन है।
अष्टम स्कन्ध : - इसमें गजेन्द्र मोक्ष, मन्वन्तर कथा, वामन अवतार का वर्णन किया गया है। ग्राह द्वारा गजेन्द्र के पकड़े जाने पर विष्णु द्वारा गजेन्द्र उद्धार की कथा का रोचक वृत्तान्त है। इसमें समुद्र मन्थन, देवासुर संग्राम और भगवान के 'वामन अवतार' की कथा और 'मत्स्यावतार' की कथा का वर्णन किया गया है।
नवम स्कन्ध : - इसमें राजवंशों का विवरण और श्रीराम की कथा का वर्णन किया गया है। इसमें मनु एवं उनके पाँच पुत्रों के वंश-इक्ष्वाकु वंश,निमि वंश, चंद्र वंश, विश्वामित्र वंश तथा पुरू वंश, भरत वंश, मगध वंश, अनु वंश, द्रह्यु वंश, तुर्वसु वंश और यदु वंश आदि और श्रीराम की कथा का वर्णन किया गया है।
दशम स्कन्ध : - इसमें भगवान् श्रीकृष्ण की अनन्त लीलाएं। इसमें श्रीकृष्ण के जन्म, कृष्ण की बाल लीलाएं, कंस वध, जरासंधसे युद्ध, द्वारकापुरी का निर्माण, रुक्मिणी हरण, प्रद्युम्न का जन्म, शम्बासुर वध, शिशुपाल वध, कृष्ण-सुदामा की मैत्री, यदु वंश का अंत का वर्णन किया गया है।
एकादश स्कन्ध : - इसमें राजा जनक और नौ योगियों के संवाद द्वारा भगवान के भक्तों के लक्षण, वर्णाश्रम धर्म, ज्ञान योग, कर्मयोग और भक्तियोग का वर्णन है।
द्वादश स्कन्ध : - इसमें विभिन्न युगों तथा प्रलयों और भगवान् के उपांगों आदि का स्वरूप वर्णन किया गया है।
भागवत कथा वाचक कौन हो?
जिस प्रकार कहा जाता है कि...
हरि अनंत,
हरि कथा अनंता।
अर्थात्
हरि अनंत है व उनकी कथा भी अकथनीय है।
अब जब ईश्वर अनंत है तो उनकी कथा का बेहतरीन वाचक भी वही हो सकता है, जो उस हरि या ब्रह्म से भीतर से जुड़ा हो। क्योंकि तब वो कथा केवल कहानी न होकर दिव्य कथा हो जाती है व शब्द शब्द न रहकर हरि वचन ही होते है। इसीलिए हमें अपने भागवत कथाओं के वाचक के लिए आवश्यकता है कि वह ब्रह्मज्ञानी अवश्य हो, तभी वह कथा ग्रहण करने वालों की आत्मा को भी छू पाएगी।
श्रीमद्भागवत पुराण क्यों पढना चाहिए ?
आज हमारा जीवन बहुत ही व्यस्त हो गया है, ऐसा नही है की पहले के लोगो का जीवन व्यस्त्पूर्ण नही था, लेकिन उनके जीवन में व्यस्तता के साथ ही धैर्य और संतोष भी था, समय के साथ इन्सान की जरूरते भी बदलती गयी, हम सभी जीवन जीने का सही ढंग भूलते जा रहे है, श्रीमद्भागवत पुराण हमें सही जीवन जीने का ढंग सीखाती है।
घर में भागवत कराने से क्या होता है?
भागवत पाठ से सभी दोष नष्ट हो जाते हैं। भागवत पुराण में 18000 श्लोक और 12 स्कंध हैं। भगवान का अर्थ भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, तारण है। इसलिए पितरों की शांति के लिए भागवत कथा का आयोजन कराना चाहिए।
भागवत कथा कराने से क्या होता है?
भगवान की विभिन्न कथाओं का सार श्रीमद् भागवत मोक्ष दायिनी है। इसके श्रवण से परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई और कलियुग में आज भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलते हैं। श्रीमदभागवत कथा सुनने से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है।
भागवत कथा क्यों करना चाहिए?
भागवत पुराण को मुक्ति ग्रंथ कहा गया है, इसलिए अपने पितरों की शांति के लिए इसे हर किसी को आयोजित कराना चाहिए। इसके अलावा रोग-शोक, पारिवारिक अशांति दूर करने, आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली के लिए इसका आयोजन किया जाता है। भागवत कथा का आयोजन करने तथा सुनने के अनेक लाभ हैं जिनमें कुछ इस प्रकार हैं…
इसे सुनने मात्र से हजारों अश्वमेघ यज्ञ आयोजनों के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।
गंगा, गया, काशी, पुष्कर या प्रयाग जैसे तीर्थों की यात्रा से भी अधिक पुण्यकारी है भागवत कथा का पाठ या इसे सुनना। इसे सुनने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसे सुनने वाले पर स्वयं श्रीहरि विष्णु की कृपा रहती है, इसलिए उसके जीवन की सभी समस्याओं का निवारण होता है।
जगत के पालनहार की कृपा दृष्टि मिलने से व्यक्ति के जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं तथा जीवन में प्रगति, खुशहाली तथा समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
इसे आयोजित कराने तथा सुनने वाले व्यक्तियों-परिवारों के पितरों को शांति तथा मुक्ति मिलती है। यह व्यक्ति को सभी प्रकार के पितृ-दोषों से निजात दिलाता है।
श्रीहरि के कृपापात्रों को संसार में कोई भयभीत नहीं कर सकता। इसलिए ऐसे व्यक्तियों को बुरी नजर, भूत-प्रेत बाधा आदि से भी मुक्ति मिलती है। पारिवारिक-मानसिक अशांति, क्लेश का नाश होता है, शत्रुओं पर विजय मिलता है तथा उनका शमन होता है।
भागवत कथा कराने में कितना खर्च आता है?
श्री मद भागवत कथा में कम से कम एक लाख रुपए और इसके बाद आप कितना भी अपनी श्रद्धा अनुसार खर्च कर सकते हैं वैसे तो आज के समय में लोगों का करीब 5 - 10 लाख तक खर्च हो जाता है। आज कल तो कुछ श्रधालु श्रीमद् भागवत कथा का लाइव प्रसारण टीवी पर कराते हैं जिसमें लगभग 25 से 50 लाख रुपये तक का भी खर्च आ जाता है।